Monday, February 2, 2015

भारत की विश्व कप टीम में मध्यक्रम के महारथी

भारतीय टीम के नये 'मिस्टर भरोसेमंद' विराट कोहली
  
ह दिसंबर 2006 की सर्द रात थी जब तड़के तीन बजे दिल्ली के 18 वर्षीय बल्लेबाज विराट कोहली के पास घर से फोन आता है कि उसके पिता इस दुनिया में नहीं रहे। कर्नाटक के खिलाफ रणजी मैच में दिल्ली पर फालोआन का संकट मंडरा रहा था और कोहली पिछले दिन 40 रन बनाकर खेल रहे थे। वह अपनी पारी आगे बढ़ाये या नहीं इसके लिये कोहली आस्ट्रेलिया दौरे पर गये अपने कोच राजकुमार शर्मा को फोन करता है और उनकी सलाह पर बल्लेबाजी जारी रखने का फैसला करता है। कोहली 90 रन बनाकर दिल्ली को फालोआन से बचाता है और उसके बाद सीधे अपने पिता की अंत्येष्टि में शामिल होने के लिये चला जाता है। कोहली की मां के शब्दों में, ''विराट उस दिन के बाद कुछ बदल गया। रातों रात वह परिपक्व बन गया। वह प्रत्येक मैच को गंभीरता से लेना लगा। उसे बेंच पर बैठना कतई पसंद नहीं था।''
     कोहली यानि वह शख्स जो आक्रामक क्रिकेट खेलना पसंद करता है। मैदान पर अपनी भावनाओं को खुलकर इजहार करने के कारण आलोचकों के निशाने पर रहता है और जिस पर दंभी होने के आरोप भी लगते रहते हैं लेकिन इन सबसे बढ़कर वह एक बेहतरीन बल्लेबाज है जो हर तरह का शाट खेलने में माहिर है और किसी भी तरह के आक्रमण के सामने और कैसी भी परिस्थितियों में रन बनाना जानता है। दबाव में अच्छा प्रदर्शन करने में कोहली का सानी नहीं। लेग साइड पर उनके शाट देखने लायक होते हैं। इसलिए तो वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में दनादन शतक ठोक रहे हैं और रनों का अंबार लगा रहे हैं। कोहली अभी केवल 25 साल के हैं और उनके नाम पर वनडे में 150 मैचों में 6232 रन दर्ज हैं। कोहली ने ये रन 51.50 की औसत से बनाये हैं जिसमें 21 शतक और 33 अर्धशतक शामिल हैं। वह वनडे में सबसे तेज 6000 रन पूरे करने वाले बल्लेबाज हैं।
     यही कोहली आज भारतीय​ क्रिकेट का अहम अंग है। यहां तक महेंद्र सिंह धौनी के टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद वह टेस्ट टीम के कप्तान बन चुके हैं और आने वाले समय में उन्हें तीनों प्रारूपों की कप्तानी सौंपी जा सकती है। कोहली के नेतृत्व में भारत ने 2008 में अंडर . 19 विश्व कप जीता और 2011 में भारत को वनडे का विश्व चैंपियन​ बनाने में भी उन्होंने अहम भूमिका निभायी। कोहली ने भारत के पहले मैच में ही शतक जड़ा और फिर फाइनल में भी 35 रन की महत्वपूर्ण पारी खेली थी। इसके बाद आस्ट्रेलियाई दौरे में जब भारत के कई दिग्गज बल्लेबाज रन बनाने के लिये जूझ रहे थे तब उन्होंने एडिलेड में 116 रन की जोरदार पारी खेलकर टेस्ट मैचों में अपना स्थान पक्का किया था। इसके बाद उन्होंने त्रिकोणीय श्रृंखला में भी शानदार खेल दिखाया। हाल में आस्ट्रेलिया के खिलाफ चार टेस्ट मैचों की श्रृंखला में कोहली ने चार शतकों की मदद से 692 रन बनाये। इसके बाद त्रिकोणीय श्रृंखला में उनका बल्लेबाजी क्रम बदलना भारत का महंगा पड़ा और वह अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाये लेकिन यह तय है कि विश्व कप में भारतीय बल्लेबाजी का दारोमदार उन पर ही टिका रहेगा। कोहली पिछली बार की विश्व कप विजेता टीम के सदस्य थे। कोहली ने विश्व कप 2011 में सभी नौ मैच खेले थे जिसमें उन्होंने 35.25 की औसत से 282 रन बनाये थे। इसमें एक शतक और एक अर्धशतक शामिल है।

सुरेश रैना : आस्ट्रेलिया में सुधारना होगा रिकार्ड 
      
पिछले लगभग दस साल से भारतीय एकदिवसीय टीम के अहम अंग रहे हैं सुरेश रैना। भारतीय टीम के पूर्व कोच ग्रेग चैपल उन्हें बेहद प्रतिभाशाली मानते थे लेकिन बायें हाथ का यह बल्लेबाज शुरूआती वर्षों में अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाया। यह कह सकते हैं कि 2005 में पदार्पण के बाद अगले तीन चार वर्ष तक बड़ी पारी खेलने के लिये तरसते रहे।
       रैना के बारे में शुरू से कहा जाता रहा कि वह शार्ट पिच गेंदों को सही तरह से नहीं खेल पाते लेकिन इसके बावजूद अपने जज्बे, धाराप्रवाह बल्लेबाजी करने की कला और चपल क्षेत्ररक्षण के कारण उन्होंने भारतीय टीम में अपनी जगह बनाये रखी। सुविधाओं के लिये तरसते उत्तर प्रदेश के स्पोर्ट्स हास्टल से निकले बायें हाथ का यह बल्लेबाज हालांकि खाली स्थानों से गेंद निकालकर रन बनाने में माहिर है। पाकिस्तान में 2008 में खेले गये एशिया कप में रैना ने दो शतक जड़कर बड़ी पारियां खेलने की शुरूआत की थी। उन्हें 2010 में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण का मौका मिला और पहले मैच में ही शतक बनाने में सफल रहे लेकिन यहां भी वह अपनी फार्म को बनाये रखने में नाकाम रहे और पिछले साढ़े चार साल में उनके नाम पर केवल 18 टेस्ट मैच दर्ज हैं।
            रैना के साथ भी अभी फार्म की दिक्कत जुड़ गयी है। आस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट श्रृंखला में उन्हें केवल एक टेस्ट मैच खेलने का मौका मिला जिसकी दोनों पारियों में वह खाता नहीं खोल पाये। इसके बाद त्रिकोणीय श्रृंखला के शुरू में उन्होंने मेलबर्न में 51 रन की पारी खेली लेकिन अगली दो पारियों में वह एक . एक रन ही बना पाये। मध्यक्रम में कोहली के बाद रैना को सबसे भरोसेमंद बल्लेबाज माना जा रहा है लेकिन यदि पिछले कुछ मैचों की तरह इनाम में अपने विकेट देते रहे तो भारत की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। रैना को संयम बरतकर खेलने की जरूरत है, क्योंकि यह सभी जानते हैं कि जब वह क्रीज पर टिक जाते हैं और उनका बल्ला चलने लगता है तो फिर गेंद लगातार सीमा रेखा के दर्शन करती है।
      उत्तर प्रदेश के यह बल्लेबाज विश्व कप 2011 की चैंपियन टीम ​का हिस्सा था। हालांकि तब उन्हें केवल चार मैच खेलने का मौका मिला था जिसमें उन्होंने 74 रन बनाये थे। रैना ने विश्व कप से पहले तक कुल 207 वनडे मैच खेले हैं जिसमें उन्होंने 35.44 की औसत से 5104 रन बनाये हैं। उनके नाम पर चार शतक और 33 अर्धशतक दर्ज हैं। इस 28 वर्षीय बल्लेबाज का हालांकि आस्ट्रेलिया में रिकार्ड आकर्षक नहीं है जहां उन्होंने 12 मैचों में 23.50 की औसत से 235 रन बनाये हैं।

अंबाती रायुडु : चयन सही साबित करने की चुनौती 
  
वीवीएस लक्ष्मण और हरभजन सिंह की नजर में अंबाती रायुडु विशेष प्रतिभा का धनी है लेकिन वह अभी तक अपनी प्रतिभा के साथ पूरी तरह न्याय नहीं कर पाये हैं। उन्होंने शुरू से बहुत जल्दी परिणाम हासिल करने के प्रयास में अपना करियर भी दांव पर लगा दिया था। अपने करियर के शुरू में कभी कोच तो कभी अंपायरों के साथ मतभेदों के कारण वह परेशानी में पड़े और ऐसे में जिस बल्लेबाज को प्रतिभाशाली माना जाता था उसका करियर दांव पर लग गया। इंडियन क्रिकेट लीग ने रही सही कसर पूरी कर दी। रायुडु इससे जुड़ गये और इससे उनका राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने का सपना भी टूटता हुआ दिखने लगा। आखिर में बीसीसीआई ने आईसीएल से जुड़े खिलाड़ियों को राहत दी और उन्हें वापसी का मौका दिया। रायुडु ने हैदराबाद के बजाय बड़ौदा से खेलना शुरू कर दिया।

    अपनी प्रवाहमय बल्लेबाजी और स्ट्रोक लगाने में कुशलता के कारण रायुडु को आखिर 2013 में जिम्बाब्वे दौरे में भारत की तरफ से खेलने का मौका मिल गया। उन्होंने अपने पहले मैच में ही अर्धशतक जड़कर शानदार आगाज किया लेकिन इसके बाद अंदर बाहर होते रहे। पिछले साल श्रीलंका के खिलाफ अहमदाबाद में नाबाद 121 रन बनाकर उन्होंने विश्व कप टीम में अपनी जगह सुनिश्चित की। आस्ट्रेलिया में त्रिकोणीय श्रृंखला में वह अवसरों का सही तरह से फायदा उठाने में नाकाम रहे। तीनों मैचों में क्रीज पर समय बिताने के बाद वह 23, 23 और 12 रन बनाकर पवेलियन लौटे। विश्व कप में मध्यक्रम में उन्हें नाजुक मौकों पर बल्लेबाजी करनी पड़ सकती है और 29 वर्षीय रायुडु को इसके लिये तैयार रहना चाहिए। रायुडु विकेटकीपिंग भी कर लेते हैं और यदि किसी मैच में धौनी नहीं खेल पाते हैं कि तो उन्हें विकेट के आगे ही नहीं विकेट के पीछे भी अपना कौशल दिखाना होगा। जिम्मेदारियां काफी हैं देखना है कि रायुडु उस पर खरा उतर पाते हैं या नहीं। वह पहली बार विश्व कप में खेलेंगे। उन्हें अब तक केवल 27 वनडे मैच खेलने का मौका मिला जिसमें उन्होंने 41.27 की औसत से 743 रन बनाये हैं। रायुडु के नाम पर एक शतक और पांच अर्धशतक भी दर्ज हैं। 
                                                                                  धर्मेन्द्र मोहन पंत 

3 comments:

  1. अरूण जैन .... अच्छा विश्लेषण है। मध्यक्रम में कोहली की भूमिका अहम होगी। उसकी फार्म पर भारत का प्रदर्शन काफी निर्भर करता है।

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  2. जीवनचंद्र जोशी .... जैसा कुछ सालों से विदेशों में इनका प्रदर्शन चल रहा है,मुझे तो लग रहा है कि यह टीम सेमीफाइनल तक भी नहीं पहुँच पाएगी.....वैसे क्रिकेट में कभी भी कुछ हो सकता है....

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  3. विश्व कप का प्रारूप ऐसा है कि बड़ी टीमों के लिये क्वार्टर फाइनल तक पहुंचना मुश्किल नहीं होगा। उसके बाद खास दिन के प्रदर्शन पर कुछ भी हो सकता है।

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