Wednesday, January 7, 2015

'यसमैन' चयनकर्ताओं की नहीं, धौनी की टीम है ये

     संदीप पाटिल बात नहीं करते। भारतीय क्रिकेट टीम का चयन करते हैं और फिर चुप्पी साध लेते हैं। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में होने वाले विश्व कप के लिये टीम का चयन करने के बाद वह संवाददाता सम्मेलन में शामिल हुए लेकिन एक बार बीसीसीआई सचिव की मदद करने के अलावा उन्होंने अपनी जुबान को ज्यादा तकलीफ नहीं दी। पिछले दो साल से यही हो रहा है। टीम चयन के बाद चयनसमिति का अध्यक्ष यह बताना उचित नहीं समझता कि आखिर अमुक खिलाड़ी क्यों चुना गया और अमुक क्यों नहीं।
      कहीं चुप रहना पाटिल की मजबूरी तो नहीं। हालात पर गौर करने से तो यही लगता है। कभी लेन पास्को का बाउंसर झेलने के बाद अगले मैच में 174 रन की धांसू पारी खेलने वाला साहसी बल्लेबाज कैसे मजबूर हो गया। इसकी शुरूआत 2012 में हुई थी जब मोहिंदर अमरनाथ ने टीम चयन में बोर्ड और कप्तान की नहीं सुनी। वह तो महेंद्र सिंह धौनी को टेस्ट कप्तानी से हटाने के पक्ष में थे। जिस टीम चयन में धौनी की तूती बोलती थी उन्हें कप्तानी से बाहर कर दिया जाए यह न तो एन श्रीनिवासन को मंजूर था और ना ही धौनी को। अमरनाथ की छुट्टी कर दी गयी।
पांचों चयनकर्ता और बीसीसीआई सचिव
           अमरनाथ की जगह पाटिल को चयनसमिति में ले लिया गया। वह मुख्य चयनकर्ता बने। उससे पहले पाटिल राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी यानि एनसीए से जुड़े थे जहां उनका कार्यकाल समाप्त होने वाला था। वह पद संभालने से पहले चेन्नई जाकर श्रीनिवासन से मिले। शायद वहां वेतन को लेकर बात हुई क्योंकि एनसीए में पाटिल को लगभग 70 लाख रूपये प्रति वर्ष मिलता था। चयनकर्ताओं का भी वेतन बढ़ गया था इसलिए बात बन गयी। अमरनाथ की जगह उत्तर क्षेत्र से विक्रम राठौड़ को चयनसमिति में जोड़ दिया गया। पूर्व क्षेत्र से सबा करीम, मध्य क्षेत्र से राजिंदर सिंह हंस और दक्षिण क्षेत्र से रोजर बिन्नी इसके सदस्य बने। 
      इसके बाद जब भी टीम का चयन किया गया वहां पर धौनी और 'बिग बॉस' की पसंद को तवज्जो दी गयी। चयनकर्ता 'यसमैन' बन गये। आखिर हर किसी में अमरनाथ जैसा साहस तो नहीं कि वह 60 लाख रूपये की परवाह किये बिना अपने दिल की बात सुने। विश्व कप टीम के चयन में भी यही हुआ। टीम को देखकर तो यही लगता है कि धौनी की हर पसंद का खयाल रखा गया। रोजर बिन्नी को उनकी सेवाओं का इनाम भी मिला। उनका बेटा स्टुअर्ट टीम में जगह पा गया। स्टुअर्ट अच्छा आलराउंडर है। सीम गेंदबाज है और कभी कभी रन भी बना लेता है। आस्ट्रेलिया में सीमरों से कुछ उम्मीद की जा सकती है लेकिन वह अदद आलराउंडर हो ऐसा नहीं है।
      सल में भारत ने पिछला विश्व कप और फिर चैंपियन्स ट्राफी आलराउंड प्रदर्शन के दम पर जीती थी लेकिन इस टीम में आप किसे आलराउंडर कहेंगे। बिन्नी, रविंद्र जडेजा, अक्षर पटेल। इनमें से तो कोई भी आलराउंडर की वास्तविक परिभाषा में फिट नहीं बैठता है। इनसे बेहतर आलराउंडर तो हिमाचल प्रदेश का रिषि धवन है। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की परिस्थितियों में धवन की मध्यम गति की सीम गेंदबाजी कारगर साबित हो सकती थी। जडेजा और पटेल किसी एक मैच में खेल पाएंगे इसकी संभावना न के बराबर है। ऐसे में टीम में मध्यम गति का एक और आलराउंडर होता तो बेहतर होता।
     रही युवराज सिंह को नहीं चुनने की बात तो इसमें हैरान होने वाला जैसा कोई कारण नहीं दिखता। धौनी पहले ही साफ करते रहे हैं कि एकदिवसीय मैचों के नियमों में बदलाव के बाद युवराज के लिये आलराउंडर के तौर पर टीम में जगह बनाना मुश्किल हो गया है। चार खिलाड़ियों को 30 गज की रेखा से बाहर रखकर आप
युवी, जहीर, वीरू और भज्जी वापसी करना होगा मुश्किल
आस्ट्रेलिया में युवराज से पांच ओवर कराने में भी कतराएंगे। बल्लेबाजी तो पहले ही भारत की मजबूत दिख रही है और भारत चार प्रमुख गेंदबाजों और एक आलराउंडर के साथ उतर सकता है। जरूरत पड़ी तो गेंदबाजी में युवराज वाली भूमिका सुरेश रैना निभा सकता है। धौनी का यह संभवत: आखिरी विश्व कप है और उन्होंने तमाम समीकरणों को फिट ​बिठाकर इसका चयन किया है। असल में युवराज, वीरेंद्र सहवाग, जहीर खान, गौतम गंभीर और हरभजन सिंह तो धौनी की सूची में शामिल ही नहीं थे। भविष्य में विराट कोहली भी शायद ही इनके नाम पर विचार करें। इसलिए यह कह सकते हो कि इन सभी की वापसी की संभावना लगभग समाप्त हो गयी है।
           कोहली ने धौनी से यह गुर सीख लिया होगा कि टीम चयन में हावी रहना है। यह सही भी है आखिर मैदान पर टीम कप्तान को संचालित करनी है और इसलिए उसका टीम का चयन करना लाजिमी है। फिर चयनकर्ताओं का क्या काम। अभी के हालात देखकर तो यही लगता है कि बोर्ड में सबसे अच्छा पद चयनकर्ताओं का है। यह गाना इन्हीं पर फिट बैठता है, '' खाओ पियो ऐश करो मित्रा''। बेहतर यही है कि कोच, कप्तान और सचिव मिलकर टीम का चयन करे। ​तब भी ऐसी टीम का चयन होगा। बीसीसीआई के भी कुछ पैसे बचेंगे क्योंकि बोर्ड के पास इतना साहस नहीं है कि वह अमरनाथ जैसे व्यक्ति को चयनकर्ता पद सौंप सके।
                                                                             .....एक भारतीय क्रिकेट प्रेमी

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